Class 11 Hindi Aroh Chapter 1 नमक का दारोगा

 
Book: National Council of Educational Research and Training (NCERT)
Board: Central Board of Secondary Education (CBSE)
Class: 11th Class
Subject: Hindi Aroh
Chapter: 1
Chapters Name: नमक का दारोगा
Medium: Hindi

नमक का दारोगा Class 11 Hindi Aroh NCERT Books Solutions

नमक का दारोगा (अभ्यास-प्रश्न)

प्रश्न 1. कहानी का कौन सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
कहानी का नायक हमें सर्वाधिक प्रभावित करता है क्योंकि वह सत्यनिष्ठ चरित्रवान दारोगा है। उसके पिता उसे बेईमानी की सलाह देते हैं। उसके चारों ओर का समाज भ्रष्ट है फिर भी वे कीचड़ में खिले कमल की तरह, अंधेरे में जले हुए दीपक की तरह बड़े गर्व और स्वाभिमान से जीते हैं। मिट्टी में भी मिला दिए जाने पर भी वह पछतावा प्रकट नहीं करता। आखिरकार पंडित अलोपीदीन भी उसकी इस दृढ़ता पर मुग्ध हो जाते हैं। उसकी यही चारित्रिक दृढ़ता हमें प्रभावित करती है।
प्रश्न 2. नमक का दारोगा कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू(पक्ष) उभरकर आते हैं?
क) कहानी के अंत में पंडित अलोपीदीन का उज्ज्वल चरित्र सामने आता है। वह अपने को गिरफ्तार करने वाले वंशीधर को कुचलने मसलने की बजाय उसका आदर करते हैं। उसे सम्मान पूर्वक अपनी सारी संपत्ति का स्थाई प्रबंधक नियुक्त करते हैं।
ख) पंडित अलोपीदीन लोगों के आर्थिक रूप से हर संभव सहायता करते हैं। पंडित अलोपीदीन ने लोगों को कभी भी धन का अभाव नहीं होने दिया। जरूरत के अनुसार लोगों की हर संभव मदद करते थे
प्रश्न 3. कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उदधृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं-
(क) वृदध मुंशी
(ख) वकील
(ग) शहर की भीड़
उत्तर-
(क) वृद्ध मुंशी –
“बेटा! घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के बोझ से दबे हुए हैं। लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ, न मालूम कब गिर पड़े। अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज़ को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी जन्मभर की कमाई है।
यह संदर्भ समाज की इस सच्चाई को उजागर करता है कि कमजोर आर्थिक दशा के कारण लोग धन के लिए अपने बच्चों को भी गलत राह पर चलने की सलाह दे डालते हैं।
(ख) वकील –
वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े। पंडित अलोपीदीन मुसकुराते हुए बाहर निकले। स्वजनबांधवों ने रुपयों की लूट की। उदारता का सागर उमड़ पड़ा। उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दी। जब वंशीधर बाहर निकले तो चारों ओर से उनके ऊपर व्यंग्यबाणों की वर्षा होने लगी। चपरासियों ने झुक-झुककर सलाम किए। किंतु इस समय एक-एक कटुवाक्य, एक-एक संकेत उनकी गर्वाग्नि को प्रज्वलित कर रहा था। कदाचित् इस मुकदमे में सफ़ल होकर वह इस तरह अकड़ते हुए न चलते। आज उन्हें संसार का एक खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ। न्याय और विद्वता, लंबी-चौड़ी उपाधियाँ, बड़ी-बड़ी दाढ़ियाँ और ढीले चोंगे एक भी सच्चे आदर के पात्र नहीं हैं।
इस संदर्भ में ज्ञात होता है कि वकील समाज में झूठ और फ़रेब का व्यापार करके सच्चे लोगों को सजा और झूठों के पक्ष में न्याय दिलवाते हैं।
(ग) शहर की भीड़ –
दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वही पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं, मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पित रोजनामचे भरनेवाले अधिकारी वर्ग, रेल में बिना टिकट सफ़र करनेवाले बाबू लोग, जाली दस्तावेज़ बनानेवाले सेठ और साहूकार, यह सब-के-सब देवताओं की भाँति गरदने चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभभरे, लज्जा से गरदन झुकाए अदालत की तरफ़ चले, तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा। शहर की भीड़ निंदा करने में बड़ी तेज़ होती है। अपने भीतर झाँक कर न देखने वाले दूसरों के विषय में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। दूसरों पर टीका-टिप्पणी करना बहुत ही आसान काम है।
प्रश्न 4. निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है, निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती है। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।
क) यह उक्ति किसकी है?
वृद्ध मुंशी जी की
ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
मासिक वेतन की पूर्णमासी का चाँद इसलिए कहा गया है क्योंकि जिस प्रकार पूर्णमासी का चाँद उस एक रात पूरा दिखाई देता है परंतु दिन प्रतिदिन घटता चला जाता है। ठीक उसी प्रकार मासिक वेतन महीने में एक बार मिलता है और दिन प्रतिदिन खर्च होकर घटता चला जाता है।
ग) क्या आप एक पिता के वक्तव्य से सहमत हैं?
नहीं, मैं एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत नहीं हूँ। मेरा अनुभव यह है कि ऊपरी आय से मन में ग्लानि उपजती है। मासिक वेतन से मन प्रसन्न होता है। और दूसरा ऊपरी आय बेईमानी की कमाई है जिससे मन में कभी भी शांति नहीं हो सकती अपितु परेशानी ही बढ़ती है।
प्रश्न 5. नमक का दारोगा कहानी में कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
नमक का दारोगा कहानी के शीर्षक ‘सच्चाई की राह’ और ‘ईमानदारी की जीत’ हो सकते हैं। वंशीधर हमेशा सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चलता था। वह कभी रिश्वत नहीं लेता था। वह अपने अनुसार जीवन जिया करता था। अपने पिता के कहने पर भी वह सच्चाई की राह पर चलता रहा और उसके द्वारा की गई ईमानदारी की जीत हुई।
प्रश्न 6. कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?
कहानी के अंत में अलोपीदीन वंशीधर को अपनी सारी संपत्ति का स्थाई प्रबंधक बना देता है। वास्तव में उसे लोगों पर विश्वास नहीं है। उसने आज तक बिकाऊ, बेईमान और भ्रष्ट लोग ही देखे हैं। उसने रिश्वत और लालच से सबको डिगा दिया। केवल वंशीधर ही था जो हजारों रुपयों के सामने अडिग रहा। उसे अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए ऐसा ही दृढ़ चरित्र, ईमानदार और कठोर प्रबंधक चाहिए था इसलिए उसने उसे नियुक्त किया।

नमक का दारोगा (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

प्रश्न 1:
‘नमक का दरोगा पाठ का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर-
नमक का दरोगा’ प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी है, जिसमें आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का एक मुकम्मल उदाहरण है। यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत है। ‘धन’ और ‘धर्म’ को क्रमशः सहुत्ति और असद्वत्ति, बुराई और अच्छाई, असत्य और सत्य कहा जा सकता है। कहानी में । इनका प्रतिनिधित्व क्रमश: पंडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है। ईमानदार, कर्मयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते हैं, लेकिन अंत में सत्य के आगे उनका सिर झुक जाता है। वे सरकारी विभाग से बर्खास्त वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते हैं और गहरे अपराध से भरी हुई वाणी में निवेदन करते हैं- ‘परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरिवत, उद्देड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे।
प्रश्न 2.
वंशीधर के पिता ने उसे कौन-कौन-सी नसीहतें दीं?
उत्तर-
वंशीधर के पिता ने उसे निम्नलिखित बातों की नसीहतें दीं-
(क) ओहदे पर पीर की मजार की तरह नज़र रखनी चाहिए।
(ख) मज़ार पर आने वाले चढ़ावे पर ध्यान रखो।
(ग) जरूरतमंद व्यक्ति से कठोरता से पेश आओ ताकि धन मिल सके।
(घ) बेगरज आदमी से विनम्रता से पेश आना चाहिए, क्योंकि वे तुम्हारे किसी काम के नहीं।
(ङ) ऊपर की कमाई से समृद्ध आती है।
प्रश्न 3.
‘नमक का दरोगा’ कहानी ‘धन पर धर्म की विजय’ की कहानी है। प्रमाण दवारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पडित अलोपीदीन धन का उपासक था। उसने हमेशा रिश्वत देकर अपने कार्य करवाए। उसे लगता था कि धन के आगे सब कमज़ोर हैं। वंशीधर ने गैरकानूनी ढंग से नमक ले जा रहीं गाड़ियों को पकड़ लिया। अलोपीदीन ने उसे भी मोटी रिश्वत देकर मामला खत्म करना चाहा, परंतु वंशीधर ने उसकी हर पेशकश को ठुकराकर उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिया। अलोपीदीन के जीवन में पहली बार ऐसा हुआ जब धर्म ने धन पर विजय पाई।

नमक का दारोगा (पठित गद्यांश)

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
1, जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वर-प्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई पूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से। अधिकारियों के पौ-बारह थे। पटवारीगिरी का सर्वसम्मानित पद छोड़-छोड़कर लोग इस विभाग की बरकंदाजी करते थे। इसके दारोगा पद के लिए तो वकीलों का भी जी ललचाता था। यह वह समय था, जब अंग्रेज़ी शिक्षा और ईसाई मत को लोग एक ही वस्तु समझते थे। फ़ारसी का प्राबल्य था। प्रेम की कथाएँ और श्रृंगार रस के काव्य पढ़कर फारसीदां लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे।
प्रश्न
1. ईश्वर प्रदत्त वस्तु क्या हैं? उसके निषेध से क्या परिणाम हुआ
2. नमक विभाग की नौकरी के आकर्षण का क्या कारण था?
3. फ़ारसी का क्या प्रभाव था?
उत्तर-
1. ईश्वर प्रदत्त वस्तु नमक है। सरकार ने नमक विभाग बनाकर उसके निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध के कारण लोग चोरी छिपे इसका व्यापार करने लगे। इससे रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला।
2. लोग पटवारीगिरी के पद को छोड़कर नमक विभाग की नौकरी करना चाहते थे, क्योंकि इसमें ऊपर की कमाई होती थीं। लोग इनकों घूस देकर अपना काम निकलवाते थे।
3. इस समय फ़ारसी का प्रभाव था। फ़ारसी पढ़े लोगों को अच्छी नौकरियाँ मिल जाती थीं। प्रेम की कथाएँ और श्रृंगार रस के काव्य पढ़कर फ़ारसी जानने वाले सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
2. उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे-बेटा घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के व्योझ से दबे हुए हैं। लड़कियां हैं यह घास फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ न मालूम कब गिर पड़े अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो।। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी वारकरा होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवाश्यकता को देखो और अवसर को देख उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है, लेकिन बेगर को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी उन्मभर की कमाई है।
प्रश्न
1. ओहद को पीर की मजार क्यों कहा गया है।
2. वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
3. तन व ऊपरी आय में क्या अंतर हैं?
उत्तर-
1. हदे को पीर की मज़ार कहा गया है। जिस तरह पीर की मज़ार पर लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं, उसी तरह नौकरी में ऊपर की कमाई के रूप में चढ़ावा मिलता है।
2. वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा गया है, क्योंकि यह महीने में एक बार मिलता है। पूर्णमासी का चाँद भी महीने में एक ही बार दिखाई देता है। उसके बाद वह घटता जाता है और एक दिन लुप्त हो जाता है। यही स्थिति वेतन की होती है।
3, वेतन पूर्णमासी के चाँद की तरह है जो एक दिन दिखता है और अंत में लुप्त हो जाता है, जबकि ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है। जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है। इसलिए उसमें बढ़ोतरी नहीं होती, जबकि ऊपर की कमाई ईश्वर देता है इसलिए इसमें बरकत होती है।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
3. पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना ही क्या, स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज्य है। उनका यह कहना यथार्थ ही था। न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं। लेटे ही लेटे गर्य से बोले-चलो, हम आते हैं। यह कहकर पंडित जी ने बड़ी निश्चितता से पान के बीड़े लगाकर खाए फिर लिहाफ़ ऑड़े हुए दारोगा के पास । आकर बोले-बाबू जी, आशीर्वाद कहिए हमसे ऐसा कौन-सा अपराध हुआ कि गाड़ियों रोक दी गई। हम ब्राहमणों पर तो आपकी कृपा-दृष्टि रहनी चाहिए। वंशीधर रुखाई से बोले-सरकारी हुक्म है।
प्रश्न
1, लक्ष्मी जी के बारे में पडित जी का क्या विश्वास था?
2. गाड़ी पकड़ जाने की खबर पर उनकी क्या प्रतिक्रिया थी और क्यों?
3. वशीधर की खाई का क्या कारण था?
उत्तर-
1, पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था। वे कहते थे कि संसार और स्वर्ग में लक्ष्मी का राज है।न्याय और नीति लछमी के इशारे पर नाचते हैं अर्थात् धन से दोन, ईमान और धर्म सब कुछ खरीदा जा सकता है।
2. गाड़ी पकड़े जाने पर वे शांत धे। वे इसे सामान्य बात मानते थे। वे बेफिक्री से पान चबाते रहे और फिर लिहाफ ओढ़कर सामान्य रूप से दरोगा के पास पहुँचे। वे समझते थे कि पैसों के बल पर अपना हर काम निकलवा लेंगे।
3. वंशीधर की रुरलाई का कारण नमक का गैर-कानूनी व्यापार था। वे ईमानदार, कठोर व दृढ़ अफसर थे। इसलिए वे सरकारी आदेश का पालन करना और करवाना अपना प्रथम उत्तरदायित्व समझाते थे।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
4. पंडित आलोपदीन ने हँसकर कहा हम सरकारी हुक्म को नहीं जानते और न सरकार को। हमारे सरकार तो आप ही हैं। हमारा और आपका तो घर का मामला है, हम कभी आपसे बाहर हो सकते हैं? मापने व्यर्थ का कष्ट उठाया; यह हो नहीं सकता कि इधर से जाएँ और इस घाट के देवता को भेंट न चढ़ावें। मैं तो आपकी सेवा में स्वयं ही आ रहा था। वंशीधर पर ऐश्वर्य की मोहिनी वशी का कुछ प्रभाव न पड़ा। ईमानदारी की नयी उमंग थी। कड़ककर बोले-हम उन नमकहरामों में नहीं हैं जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेचते फिरते हैं। आप इस समय हिरासत में हैं। आपका कायदे के अनुसार चालान होगा। बस मुझे अधिक बातों की पुरसत नहीं है। जमादार बदलू सिंह, तुम इन्हें हिरासत में ले चलो, मैं हुक्म देता हैं।
प्रश्न
1. पडित अलोपीदीन का व्यवहार कैसा है?
2. ‘घाट के देवता को भेंट चढाने से क्या तात्पर्य हैं?
3 दशधर का व्यवहार कैसा था।
उत्तर-
1. पंडित अलोपीदीन चालाक व्यापारी है। वह चापलूसी, रिश्वत आदि से अपना काम निकलवाना जानता है। रिश्वत देने में माहिर होने के कारण वह सरकारी कर्मियों व अदालत से नहीं घबराता।
2. इस कथन का तात्पर्य है कि इस क्षेत्र के नमक के दरोगा को रिश्वत देना आवश्यक है अर्थात् बिना रिश्वत दिए वह मुफ्त में घाट नहीं पार करने देंगे।
3, वंशीधर ने अलौपदीन से कठोर व्यवहार किया। वह ईमानदार था तथा गैरकानूनी कार्य करने वालों को सजा दिलाना चाहता था। इस प्रकार वंशीधर का व्यवहार सरकारी गरिमा एवं पद के अनुरूप था।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वहीं पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं मानी संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पित रोशनामधे भरनेवाले अधिकारी वर्ग, रेन में बिना टिकट सफर करने वाले बाद लोग, जाली दस्तावेज़ लानानेवाले सेठ और साहूकार, यह सब-वे-सब देवताओं की भाँति गरदने चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित भलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभ भरे, लज्जा से गरदन झुकाए अदालत की तरफ चले तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा।
प्रश्न
1. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जगती थी।’ से क्या तात्पर्य हैं।
2. देवताओं की तरह गरदने चलाने का क्या मतलब है
३. कौन-कौन लोग गरदन चला रहे थे?
उत्तर-
1. इस कधन के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि संसार में परनिंदा हर समय होती रहती है। रात के समय हुई घटना की चर्चा आग की तरह सारे शहर में फैल गई। हर आदमी मजे लेकर यह बात एक-दूसरे बता रहा था।
2. इसका अर्थ है-स्वयं को निर्दोष समझना। देवता स्वयं को निर्दोष मानते हैं, अतः वे मानव पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं। पंडित अलोपीदीन के पकड़े जाने पर भ्रष्ट भी उसकी निंदा कर रहे थे।
3. पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला, नकली बही-खाते बनाने वाला अधिकारी वर्ग, रेल में बेटिकट यात्रा करने वाले बाबू जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार ये भी गरदने चला रहे थे।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
6. किंतु अदालत में पहुँचने की देर थी। पंडित अलोपीदीन इस अगाध वन के सिंह थे। अधिकारी वर्ग उनके भक्त, मले उनके सेवक, वकील मुलार उनके आज्ञापालक और अदला चपरासी तथा चौकीदार तो उनके बि| माल के गुलाम थे। उन्हें देखते ही लो। चारों तरफ से दौड़े। सभी लोग विस्मित हो रहे थे। इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया, बल्दिा इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे । आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करनेवाला धन और अनन्य वाघालता हो, वह यय कानून के पंजे में आए । प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था। बड़ी तत्परता से इस आक्रमण को रोकने के निमित्त वकीलों की एक सेना तैयार की गई। न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया। वंशीधर चुपचाप खड़े थे। उनके पास सत्य के सिवा न कोई बल था, न स्पष्ट भाषण के अतिरिक्त कोई शस्त्र। गवाह थे किंतु लोभ से डाँवाडोल।
प्रश्न
1. किस वन का सिह कहा गया तथा क्यों?
2. कचहरी की अगाध वन क्यों कहा गया।
३. लोगों के विस्मित होने का क्या कारण था?
उत्तर-
1. 1पंडित अलोपीदीन को अदालत रूपी वन का सिंह कहा गया, क्योंकि यहाँ उसके खरीदे हुए अधिकारी, अमले, अरदली, चपरासी, चौकीदार आदि थे। वे उसके हुबम के गुलाम थे।
2. कचहरी को अगाध वन कहा गया है, क्योंकि न्याय की व्यवस्था जटिल व बीहड़ होती है। हर व्यक्ति दूसरे को खाने के लिए वोठा है| वहा से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है, जिससे जनसाधारण न्याय प्रणाली का शिकार बनकर रह जाता है।
3. लोग अलोपीदीन की गिरफ्तारी से हैरान थे, क्योंकि उन्हें उसकी धन की ताकत व बातचीत की कुशलता का पता था। उन्हें उसवे पकड़े जाने पर हैरानी थी क्योंकि वह अपने धन के बल पर कानून की हर ताकत से बचने में समर्थ था।

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