रहीम के दोहे – प्रश्नोत्तरी
1. पाठ से समझ
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सबसे सही उत्तर कौन-सा है?
- “रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल। आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।” दोहे का भाव है-
उत्तर: सदा सच बोलना चाहिए। - “रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।” इस दोहे का भाव क्या है?
उत्तर: हर छोटी-बड़ी चीज़ का अपना महत्व होता है।
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि आपने यही उत्तर क्यों चुने?
उत्तर:
हम अपने व्यवहार से ही किसी को अपना या पराया बना सकते हैं। जीभ स्वर्ग से लेकर पाताल तक की सही-गलत बातें करके मुँह के अंदर चली जाती है और हमें अपने संबंधों को गँवाकर उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। अतः पहले प्रश्न के उत्तरस्वरूप हमने “सोच-समझकर बोलना चाहिए” को चुना है।
दूसरे प्रश्न का उत्तर हमने “हर छोटी-बड़ी चीज़ का अपना महत्व होता है” को चुना है क्योंकि आकार या धन से कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। समय या आवश्यकता के अनुसार सभी का अपना-अपना महत्व होता है। सुई और तलवार का वस्तुतः अपना अलग-अलग महत्व है।
2. मिलकर करें मिलान
स्तंभ 1 | स्तंभ 2
- रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय। | 3. प्रेम या रिश्तों को सहेजकर रखना चाहिए।
- कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत। बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत। | 2. सच्चे मित्र विपत्ति या विपदा में भी साथ रहते हैं।
- तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान। | 1. सज्जन परहित के लिए ही संपत्ति संचित करते हैं।
3. पंक्तियों पर चर्चा
(क) “रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।”
उत्तर:
यह दोहा जीवन की कटु सच्चाई पर आधारित है। कवि ने जीवन के यथार्थ का बहुत बारीकी से अध्ययन करके यह सत्य लिखा है। यदि थोड़े समय के लिए विपदा अर्थात दुख या मुसीबत आकर जल्दी समाप्त हो जाती है तो वह अच्छी बात है। कवि लंबे समय तक रहने वाली कठिनाई या मुसीबत को भला नहीं कह रहे हैं। छोटे से समय के लिए आने वाली मुसीबत ही हमें बहुत कुछ बता देती है। दिखावा करने वाले लोग उस मुसीबत में हमसे किनारा कर लेते हैं। केवल सच्चे रिश्ते निभाने वाले लोग ही दुख में भी हमारे साथ खड़े रहते हैं।
(ख) “रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल। आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।”
उत्तर:
यह दोहा भी मानव समाज के लिए बहुत बड़ी सीख है। कुछ लोग हर समय बिना सोचे-समझे बोलते रहते हैं। जीभ के लिए तो वैसे भी एक उक्ति प्रसिद्ध है- यह बिना हड्डी की होती है अर्थात यह कभी भी कुछ भी कह सकती है। इसीलिए रहीम जी कहते हैं कि जीभ तो बावरी है। यह स्वर्ग से लेकर पाताल तक की चर्चा कर डालती है। जबकि स्वर्ग और पाताल हमारी कल्पना के आधार पर बनते-बिगड़ते रहते हैं। जीभ स्वयं तो कुछ भी कहकर मुँह के भीतर छिपी रहती है और इसके द्वारा बोले गए अनेक वाक्य लड़ाई का कारण तक बन सकते हैं। अर्थात गलत काम करती तो जीभ है पर सुनना या भुगतना हमें पड़ता है।
4. सोच-विचार के लिए
प्रश्न 1:
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।”
**(क) इस दोहे में ‘मिले’ के स्थान पर ‘जुड़े’ और ‘छिटकाय’ के स्थान पर ‘चटकाय’ शब्द का प्रयोग भी लोक में प्रचलित है; जैसे-
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।” इसी प्रकार पहले दोहे में ‘डारि’ के स्थान पर ‘डार’, ‘तलवार’ के स्थान पर ‘तरवार’ और चौथे दोहे में ‘मानुष’ के स्थान पर ‘मानस’ का उपयोग भी प्रचलित हैं। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के बदलाव शब्द-परिवर्तन के कारण हो सकते हैं। जहाँ समय के साथ-साथ कई शब्दों का उच्चारण परिवर्तित हो जाता है वहीं कोई जान-बूझकर भी अपनी रचना में इन शब्दों को बदल देता है। हालाँकि शब्दों के मूल अर्थ में बदलाव नहीं होता है।
(ख) इस दोहे में प्रेम के उदाहरण में धागे का प्रयोग ही क्यों किया गया है? क्या आप धागे के स्थान पर कोई अन्य उदाहरण सुझा सकते हैं? अपने सुझाव का कारण भी बताइए।
उत्तर:
इस दोहे में प्रेम के उदाहरण में धागे का प्रयोग इसलिए किया गया है कि धागा प्रेम दर्शाने का एक उपयुक्त माध्यम है। जिस प्रकार धागे को जोड़ने के लिए उसमें गाँठ लगाना आवश्यक है और गाँठ रुकावट के रूप में होती है। कुछ विद्वान इसका विरोध भी करते हैं, उनका मानना है कि रिश्ते तो निबाहने पड़ते हैं। जीवन में मनमुटाव तो चलता ही रहता है।
हाँ, हम धागे के स्थान पर मोती का प्रयोग भी कर सकते हैं। सच्चा मोती बेशकीमती होता है। उस पर यदि जोर से प्रहार किया जाए तो उसकी चमक को नुकसान पहुँचता है। वस्तुतः ‘धागा’ शब्द अपने आप में संपूर्ण अर्थ समाहित किए हुए है, फिर भी यदि बदलाव करना ही है तो ‘मोती’ को लिया जा सकता है।
प्रश्न 2:
“तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।” इस दोहे में प्रकृति के माध्यम से मनुष्य के किस मानवीय गुण की बात की गई है? प्रकृति से हम और क्या-क्या सीख सकते हैं?
उत्तर:
इस दोहे में प्रकृति के माध्यम से परोपकार के लिए प्रेरित किया गया है। पेड़ और सरोवर दूसरों की भलाई के लिए ही क्रमशः फल और पानी अपने में समाहित करके रखते हैं। वे स्वयं उनका उपयोग नहीं करते। प्रकृति हमें देने की भावना सिखाती है। हमें भी प्रकृति की भाँति ही प्यार, सम्मान और आशीर्वाद देने की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। प्रकृति हमें मुसीबतों का सामना करने तथा धैर्यवान बनने की शिक्षा देती है। हमें हर परिस्थिति में ढलना सीखना चाहिए। पवन से हमें निरंतर चलते रहने अर्थात सतत प्रयास करने की शिक्षा मिलती है। इसी प्रकार आग स्वयं जलकर दूसरों को गर्मी देने की सीख देती है और हरी-भरी प्रकृति मानव में उमंग का संचार करती है। धरती से हमें सहनशक्ति की शिक्षा मिलती है। आज हमें प्रकृति से शिक्षा लेकर उसकी सुरक्षा के लिए कार्य करना चाहिए।
शब्दों की बात
हमने शब्दों के नए-नए रूप जाने और समझे। अब कुछ करके देखें-
शब्द – सपंदा
कविता में आए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। इन शब्दों को आपकी मातृभाषा में क्या कहते हैं? लिखिए।
उत्तर:
- तरुवर: तरु, वृक्ष, पेड़
- बिपति: विपत्ति, मुसीबत, संकट
- छिटकाय: छिटकना, बिखरना
- सुजान: चतुर, सयाना, समझदार
- सरवर: सरोवर, तालाब
- साँचे: सच्चा, सही
- कपाल: खोपड़ी, मस्तक
शब्द एक अर्थ अनेक
“रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥”
इस दोहे में ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं- सम्मान, जल, चमक।
इसी प्रकार कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। आप भी इन शब्दों के तीन-तीन अर्थ लिखिए। आप इस कार्य में शब्दकोश, इंटरनेट, शिक्षक या अभिभावकों की सहायता भी ले सकते हैं।
उत्तर:
- कल: चैन, मशीन, बीता हुआ और आने वाला दिन
- पत्र: पत्ता, चिट्ठी, अखबार
- कर: हाथ, टैक्स, किरण
- फल: परिणाम, वृक्ष का फल, भाले की नोंक
पाठ से आगे
आपकी बात:
“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।”
इस दोहे का भाव है- न कोई बड़ा है और न ही कोई छोटा है। सबके अपने-अपने काम हैं, सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता और महत्ता है। चाहे हाथी हो या चींटी, तलवार हो या सुई, सबके अपने-अपने आकार-प्रकार हैं और सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता और महत्व है। सिलाई का काम सुई से ही किया जा सकता है, तलवारे से नहीं। सुई जोड़ने का काम करती है जबकि तलवार काटने का। कोई वस्तु हो या व्यक्ति, छोटा हो या बड़ा, सबका सम्मान करना चाहिए।
अपने मनपसंद दोहे को इस तरह की शैली में अपने शब्दों में लिखिए। दोहा पाठ से या पाठ से बाहर का हो सकता है।
उत्तर:
मनपसंद दोहा-
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”
इस दोहे का भाव है कि यदि कोई वस्तु आकार में बहुत बड़ी है पर उसका कुछ उपयोग नहीं तो वह व्यर्थ है। इसी प्रकार कोई व्यक्ति बहुत धनी और शक्तिशाली है, परंतु उसमें परोपकार, मानवता जैसे गुण नहीं हैं तो उसका बड़प्पन व्यर्थ है। ठीक उसी प्रकार, जैसे खजूर का पेड़ बहुत ऊँचा, बहुत बड़ा होता है, पर न तो वह यात्री को छाया का सुख दे पाता है, न ही कोई भूखा व्यक्ति उसके फल तोड़कर अपनी भूख मिटा सकता है।
आज की पहेली
प्रश्न 1:
दो अक्षर का मेरा नाम, आता हूँ खाने के काम
उल्टा होकर नाच दिखाऊँ, मैं क्यों अपना नाम बताऊँ।
उत्तर: चना।
प्रश्न 2:
एक किले के दो ही द्वार, उनमें सैनिक लकड़ीदार
टकराएँ जब दीवारों से, जल उठे सारा संसार।
उत्तर: माचिस।
खोजबीन के लिए
रहीम के कुछ अन्य दोहे पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता से पढ़ें, देखें व समझें।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
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