Sparsh Hindi Class 9 Solutions Chapter 1 धूल
Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 धूल Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
1. हीरे के प्रेमी उसे किस रूप में पसंद करते हैं?
2. लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
3. मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है?
उत्तर
- हीरे के प्रेमी उसे साफ-सुथरा, खरादा हुआ और आँखों में चकाचौंध पैदा करता हुआ देखना चाहते हैं।
- लेखक ने संसार में अखाड़े की मिट्टी में सनने के सुख को दुर्लभ माना है। तेल और मट्ठे से सिझाई हुई जिस अखाड़े की मिट्टी को देवताओं पर चढ़ाया जाता है, उसको अपनी देह पर लगाना संसार के सबसे दुर्लभ सुख के समान है।
- मिट्टी की आभा का नाम ‘धूल’ है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।
लिखित
प्रश्न (क)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए
1. धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?
2. हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?
3. अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
4. श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?
5. इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर
1. माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। माँ की गोद से उतरकर बच्चा मातृभूमि पर कदम रखता है। घुटनों के बल चलना सीखता है फिर धूल से सनकर विविध क्रीड़ाएँ करता है। शिशु का बचपन मातृभूमि की गोद में धूल से सनकर निखर उठता है। इसलिए धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती। यह धूल ही है जो | शिशु के मुँह पर पड़कर उसकी स्वाभाविक सुंदरता को उभारती है। अभिजात वर्ग ने प्रसाधन सामग्री में बड़े-बड़े आविष्कार किए, परंतु शिशु के मुँह पर छाई वास्तविक गोधूलि की तुलना में वह सामग्री कोई मूल्य नहीं रखती।।
2. हमारी सभ्यता धूल से इसलिए बचना चाहती है क्योंकि वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है। हवाई किले बनाती है। वास्तविकता से दूर रहती है परंतु धूल के महत्व को नहीं समझती। यह सभ्यता अपने बच्चों को धूल में नहीं खेलने देना चाहती। धूल से उसकी बनावटी सुंदरता सामने आ जाएगी। उसके नकली सलमें-सितारे धुंधले पड़ जाएँगे। धूल के प्रति उसमें हीनभावना है। इस प्रकार हमारी सभ्यता आकाश की बुलंदियों को छूना चाहती है। वह हीरों का प्रेमी है, धूल भरे हीरों का नहीं। धूल की कीमत को वह नहीं पहचानती।।
3. अखाड़े की मिट्टी शरीर को पहचानती है। यह साधारण मिट्टी नहीं होती है। इसे तेल और मट्ठे से सिझाया जाता है। और देवताओं पर चढ़ाया जाता है। ऐसी मिट्टी में सनना परम सुख है। जहाँ इसके स्पर्श से मांसपेशियाँ फूल उठती हैं। शरीर मजबूत और व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है। वही इसमें चारों खाने चित्त होने पर विश्व-विजेता होने के सुख का अहसास होता है। लेखक की दृष्टि में इसके स्पर्श से वंचित होने से बढ़कर दूसरा कोई दुर्भाग्य नहीं है।
4. श्रद्धा विश्वास का प्रतीक है। भक्ति हृदय की भावनाओं का बोध कराती है। प्यार का बंधन स्नेह की भावनाओं को जोड़ता है। लोग कहते हैं कि धूल के समान तुच्छ कोई नहीं है, जबकि सभी धूल को माथे से लगाकर उसके प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं। वीर योद्धा धूल को आँखों से लगाकर उसके प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं। हमारा शरीर
भी मिट्टी से बना है। इस प्रकार धूल अपने देश के प्रति श्रद्धा, भक्ति और स्नेह व्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन है।
5. इस पाठ में लेखक ने बताया है कि जो लोग गाँव से जुड़े हुए हैं। वे यह कल्पना ही नहीं कर सकते कि धूल के बिना भी कोई शिशु हो सकता है। वे धूल से सने हुए बच्चे को ‘धूलि भरे हीरे’ कहते हैं। आधुनिक नगरीय सभ्यता बच्चों को धूल में खेलने से मना करती है। नगर में लोग कृत्रिम वातावरण में जीने पर विवश होते हैं। नगर की सभ्यता को बनावटी, नकली और चकाचौंध भरी कहा गया है। यहाँ लोगों को काँच के हीरे ही प्यारे लगते हैं। नगरीय सभ्यता में गोधूलि का महत्त्व नहीं होता जबकि ग्रामीण परिवेश का यह अलंकार है। नगरों में तो धूल-धक्कड़ होती है गोधूलि नहीं।
प्रश्न (ख)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1. लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को क्यों श्रेष्ठ मानता है?
2. लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है?
3. ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?
4. ‘हीरा वही घन चोट न टूटे’-का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
5. धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
6. ‘धूल’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
7. कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर
1. लेखक बालकृष्ण के मुँह पर छाई गोधूलि को इसलिए श्रेष्ठ मानता है क्योंकि यह धूल उनके सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देती है। यहाँ कृत्रिम प्रसाधन सामग्री की निरर्थकता को प्रकट किया गया है। फूलों के ऊपर रेणु उनकी शोभा को बढ़ाती है। वही शिशु के मुँह पर उसकी स्वाभाविक पवित्रता को निखार देती है। सौंदर्य प्रसाधन उसे इतनी सुंदरता प्रदान नहीं करते जितनी धूल करती है। इसलिए लेखक धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना कर ही नहीं सकता।
2. लेखक ने धूल और मिट्टी में विशेष अंतर नहीं माना है। उसके अनुसार मिट्टी और धूल में उतना ही अंतर है। जितना कि शब्द और रस में, देह और जान में अथवा चाँद और चाँदनी में होता है। जिस प्रकार ये अलग-अलग होते हुए भी एक हैं, उसी प्रकार धूल और मिट्टी अलग नाम होकर भी एक ही हैं। मिट्टी की आभा का नाम धूल। है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से होती है, जीवन के सभी अनिवार्य सार तत्त्व मिट्टी से ही मिलते हैं। जिन फूलों को हम अपनी प्रिय वस्तुओं का उपमान बनाते हैं, वे सब मिट्टी की ही उपज हैं। रूप, रस, गंध, स्पर्श इन्हें मिट्टी की देन माना जा सकता है। मिट्टी में जब चमक उत्पन्न होती है तो वह धूल की पवित्र रूप ले लेती है। यही धूल हमारी संस्कृति की पहचान है।
3. ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के अनगिनत सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है• ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े बच्चे धूल से सने दिखाई देते हैं। यह धूल उनके मुख पर उनकी सहज पवित्रता को निखार देती है।
- गाँव के अखाड़ों में भी धूल का प्रभाव दिखाई देता है यहाँ की मिट्टी तेल और मछे से सिझाई हुई होती है। जिसे देवता पर भी चढ़ाया जाता है।
- ग्रामीण परिवेश में शाम के समय जंगल से लौटते हुए गायों के खुरों से उठती धूल गोधूलि की पवित्रता को प्रमाणित करती है।
- सूर्यास्त के उपरांत बैलगाड़ी के निकल जाने के बाद उसके पीछे उड़नेवाली धूल रुई के बादल के समान दिखाई देती है या ऐरावत हाथी के नक्षत्र-पथ की भाँति जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है।
- चाँदनी रात में मेले जानेवाली गाड़ियों के पीछे जो कवि की कल्पना उड़ती चलती है, वह शिशु के मुँह पर, धूल की पंखुड़ियों के समान सौंदर्य बनकर छा जाती है।
- गाँव के किसानों के हाथ-पैर तथा मुँह पर छाई धूल हमारी सभ्यता को प्रकट करती है।
4. इस पंक्ति में लेखक ने हीरे और काँच में तुलना करते हुए कहा है कि सच्चा हीरा वही होता है जो हथौड़े की चोट पड़ने पर भी नहीं टूटता। काँच और हीरे में यही मुख्य अंतर है। धूल भरे हीरे में ऊपरी धूल को न देखकर भीतरी चमक को निहारना चाहिए जो अटूट होती है। यह अमरता का दृढ़ प्रकाश प्रस्तुत करती है। काँच की चमक को देखकर मोहित हो जाना मूर्खता है। हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है। हीरा शाश्वतता का स्पष्ट प्रमाण है तो काँच क्षणिकता का। हीरा एक न एक दिन अपनी अमरता का बोध कराकर काँच की नश्वरता को प्रमाणित करता है। लेखक के अनुसार धूल में लिपटा किसान आज भी अभिजात वर्ग की उपेक्षा का पात्र है। किसान उसकी उपेक्षा सहनकर मिट्टी से प्यार करता है और अपने परिश्रम से अन्न पैदा करता है। यह उसके परिश्रमी होने का प्रमाण है। वह ऐसा हीरा है जो धूल से भरा है। हीरा अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है जो हथौड़े की चोट से भी नहीं टूटता। इसी प्रकार से भारतीय किसान भी कठोर परिश्रम से नहीं घबराता है इसलिए वह अटूट है।
5. धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाएँ अलग हैं। धूल जीवन का यथार्थवादी गद्य हैं तो धूलि उसकी कविता है। अर्थात् हमारा शरीर जिस धूल और मिट्टी से बना है, वही धूल उसकी वास्तविकता प्रकट करती है और इसी धूल शब्द को कवियों ने धूलि के रूप में अभिव्यजित किया है। धूली छायावादी दर्शन है। इसकी वास्तविकता छायावादी कविता के समान संदिग्ध है। धूरि लोक संस्कृति का नवीन जागरण है अर्थात् भारतीय संस्कृति में कवियों ने धूरि शब्द का प्रयोग करके अपनी प्राचीन सभ्यता को प्रकट करना चाहा है। इसी प्रकार गौ-गोपालों के पद संचालन से उड़नेवाली मिट्टी को गोधूलि कहा गया है। इन सबका रंग चाहे एक ही हो किंतु रूप में भिन्नता है, मिट्टी काली, पीली, लाल तरह-तरह की होती है। लेकिन धूल कहते ही शरत् के धुले-उजले बादलों का स्मरण हो जाता है।
धूल है
6. ‘धूल’ पाठ में लेखक ने धूल की महिमा, माहात्म्य व उपलब्धता व उपयोगिता का वर्णन किया है। इस पाठ के
माध्यम से लेखक ने मजदूर किसानों के महत्व को स्पष्ट किया है। उनका मानना है कि धूल से सना व्यक्ति घृणा अथवा उपेक्षा का पात्र नहीं होता बल्कि धूल तो परिश्रमी व्यक्ति का परिधान है। धूल से सना शिशु धूलि भरा हीरा’ कहलाता है। आधुनिक सभ्यता में पले लोग धूल से घृणा करते हैं। वे यह नहीं जानते कि धूल अथवा मिट्टी ही जीवन का सार है। मिट्टी में ही सब पदार्थ उत्पन्न होते हैं। इसलिए सती मिट्टी को सिर से, सिपाही आँखों से तथा आम नागरिक स्नेह से स्पर्श करता है। अतः लेखक ने देश-प्रेम और संस्कृति की प्रतीक धूल को विभिन्न सूक्तियों, लोकोक्तियों तथा उदाहरणों के माध्यम से प्रतिपादित किया है।
7. लेखक का विचार है कि गोधूलि पर अनेक कवियों ने कविता लिखी है, परंतु वे उस धूलि को सजीवता से चित्रित नहीं कर पाए हैं, जो गाँवों में संध्या के समय गाएँ चराकर लौटते समय ग्वालों और गायों के पैर से उठकर सारे वातावरण में फैल जाती है। अधिकांश कवि शहर के रहने वाले हैं और शहरों में धूल-धक्कड़ तो होता है, परंतु गाँव की गोधूलि नहीं होती इसलिए वे गाँव की गोधूलि का सजीव वर्णन अपनी कविताओं में नहीं कर पाए। हिंदी कविता की सबसे सुंदर पंक्ति है जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाएगा’ परंतु फिर भी विडंबना यह है कि कवियों की लेखनी पर नगरीय सभ्यता विस्तार के कारण विराम-चिह्न लग गया है।
प्रश्न (ग)
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
1. फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता का निखार देती है।
2. ‘धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की’-लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
3. मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।
4. हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।
5. वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
उत्तर
1. इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि शिशु धूल-मिट्टी से सना हुआ ही अच्छा लगता है। धूल
के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती। इस प्रकार धूल से सने शिशु को ‘धूलि भरे हीरे’ कहा जाता है। जैसे फूल के ऊपर पड़े हुए धूल के कण उसकी शोभा को बढ़ा देते हैं वैसे ही शिशु के मुँह पर पड़ी हुई धूल उसके सहज स्वरूप को और भी निखार देती है। उस समय बड़ी-बड़ी खोजों से उपलब्धं किसी भी कृत्रिम प्रसाधन सामग्री की आवश्यकता नहीं होती। अर्थात् मिट्टी यदि विविध आकार देती है तो धूल मुख की कांति शोभायमान करती है। जीवन कर्मशील हो उठता है इसलिए धूल को व्यर्थ नहीं मानना चाहिए।
2. इस पंक्ति द्वारा लेखक यह कहना चाहता है कि धूल से सने बच्चे को गोद में उठानेवाला व्यक्ति धन्य है, जो अपने शरीर से धूल को स्पर्श करते हैं। चाहे यह धूल उन बच्चों के माध्यम से उन्हें स्पर्श करती हो जिन्हें वह गोद में उठाए रहते हों। लेखक ने धूल की उपयोगिता और महिमा का वर्णन करते हुए ग्रामीण वातावरण में पले-बढ़े बच्चों को धन्य बतलाया है, क्योंकि इनका बचपन गाँव के गलियारों की धूल में बीता होता है, उनके कर्ता-पिता भी धन्य हैं जो धूल-धूसरित अपने शिशु को अंक से लिपटा लेते हैं। फलस्वरूप वह पवित्र धूल उनके शरीर को पवित्र कर देती है। इसलिए कवि ने उन्हें धूल भरे हीरे कहकर संबोधित किया है।
3. शरीर अगर मिट्टी है तो आत्मा उसका सार तत्व है। मिट्टी शरीर को विभिन्न आकार देती है तो धूल जीवन की स्वाभाविकता को बनाए रखती है। जिस प्रकार शब्द में रस निहित होता है, देह में प्राण और चंद्रमा में चाँदनी का वास होता है और उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार धूल और मिट्ट दोनों एक ही हैं। मिट्टी के रंग-रूप की पहचान धूली से होती है। धूल जीवन की सरलता व भोलेपन को बनाए रखती है। इससे हम अपनी सभ्यता से जुड़े रहते हैं।
4. लेखक का मानना है कि हमारी देशभक्ति का स्तर इतना गिर गया है कि हम अपने देश की मिट्टी को आदर देने के स्थान पर उसका तिरस्कार करते हैं। हम अपने देश को छोड़कर विदेशों की ओर भाग रहे हैं। लेखक का यह संदेश है कि यदि हमारे भीतर अपने देश के प्रति ज़रा-सा भी प्रेम है तो हम उसकी धूल को चाहे माथे से न लगाएँ परंतु कम से कम उसका स्पर्श करने से पीछे न हटें। अपने देश की धूल का सम्मान करें। उससे घृणा न करें तथा उसे तुच्छ न समझकर उसके महत्त्व को समझें।
5. लेखक ने काँच और हीरे में अंतर बताते हुए कहा है कि हीरा अनमोल होता है। उसके भीतर की चमक चाहे हमारी आँखों के सामने से ओझल रहे किंतु वह अमर होता है। वह कभी गहरी चोट लगने पर भी टूटता नहीं है और कभी पलटकर वार नहीं करता। वास्तविक हीरे की परख हथौड़े की चोट पर खरी उतरती है। हीरे को पहचानने के लिए पारखी दृष्टि अनिवार्य है नहीं तो काँच की चमक मन मोह लेती है। हीरे को देखकर उसके प्रेमी उसे साफ़-सुथरा, खरादा हुआ, आँखों में चकाचौंध पैदा करता हुआ देखना चाहते हैं। उसके भीतरी सुंदरता का भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। काँच की चमक नश्वरता का प्रतीक है। उसके पीछे दौड़ना मूर्खता का पर्याय है।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग छाँटिए
उदाहरणः विज्ञापित-वि (उपसर्ग) ज्ञापित
संसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निद्वंद्व, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन। उत्तर संसर्ग
उत्तर
प्रश्न 2.
लेखक ने इस पाठ में धूल चूमना, धूल माथे पर लगाना, धूल होना जैसे मुहावरे प्रयोग किए हैं। धूल से | संबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए। उत्तर
उत्तर
- धूल में मिलना-मोहन ने परिश्रम से चित्रकारी की थी लेकिन मीता ने उस पर पानी डालकर उसे धूल में । मिला दिया।
- धूल से खेलना-हम बचपन से ही धूल से खेल-खेलकर बड़े हुए हैं।
- धूल चाटना-पुलिस की मार खाकर अपराधी धूल चाटने लगा।
- धूल फाँकना-अखिल इतनी डिग्रियाँ होते हुए काम न मिलने कारण इधर-उधर धूल फाँकता फिर रहा है।
- धूल उड़ना-चुनाव हार जाने के कारण उसके घर पर धूल उड़ने लगी। जात
योग्यता-विस्तार
प्रश्न 1.
शिव मंगल सिंह सुमन की कविता ‘मिट्टी की महिमा’ , नरेश मेहता की कविता ‘मृतिका’ तथा सर्वेश्वर
दयाल सक्सेना की ‘धूल’ शीर्षक से लिखी कविताओं को पुस्तकालय में ढूँढ़कर पढ़िए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें। परियोजना कार्य
प्रश्न 2.
इस पाठ में लेखक ने शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता का जिक्र किया है। इस असारता का वर्णन अनेक भक्त कवियों ने अपने काव्य में किया है। ऐसी कुछ रचनाओं का संकलन कर कक्षा में भित्ति पत्रिका में लगाइए।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें।
No Responses