Book: | National Council of Educational Research and Training (NCERT) |
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Board: | Central Board of Secondary Education (CBSE) |
Class: | 11th Class |
Subject: | Hindi Aroh |
Chapter: | 4 |
Chapters Name: | विदाई संभाषण |
Medium: | Hindi |
विदाई संभाषण Class 11 Hindi Aroh NCERT Books Solutions
विदाई संभाषण (अभ्यास प्रश्न)
प्रश्न 1. शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
शिवशंभु की दो गाय की कहानी के माध्यम से लेखक हिंदुस्तान की आपसी प्रेम, मेलजोल व अच्छे व्यवहार की ओर संकेत करना चाहता है। आपसी प्रेम-भाव के कारण विदाई का समय बहुत दुखदायी होता है। इसका दृष्टांत लेखक ने दो गायों के माध्यम से दिया है। शिवशंभु के पास दो गाय थी। किसी कारणवश शिवशंभु ने अपनी बलशाली गाय को किसी पुरोहित को दे दिया किंतु इससे कमजोर गाय खुश न होकर इतनी दुखी हुई कि उसने चारा भी नहीं छुआ। इससे हमें पता चलता है कि पशु-पक्षी भी विदाई के समय दुःखी हो जाते हैं।
प्रश्न 2. आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया- यहाँ किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है?
इस कथन द्वारा लेखक ने बंगाल विभाजन की ओर संकेत किया है। लॉर्ड कर्जन के कार्यों में सबसे मुख्य कार्य बंगाल विभाजन ही था। 7 जुलाई 1905 को इस योजना की सरकारी घोषणा की गई। 6 अक्टूबर 1905 को इस योजना को लागू किया गया। ऊपरी तौर पर यह कदम प्रशासन की कुशलता की दृष्टि से उठाया गया था किंतु इसका वास्तविक उद्देश्य बंगाल में राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर बनाना तथा हिंदू मुसलमानों में फूट डालना था।
प्रश्न 3. लॉर्ड कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ा?
लॉर्ड कर्जन 1899 से 1904 तथा 1904 से 1905 तक दो बार वायसराय रहे। सारी जनता इनके शासन से दुखी थी। उन्होंने मनपसंद अंग्रेज सदस्यों को पदों पर नियुक्त करवाना चाहा। उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
प्रश्न 4. विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई! कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे!- आशय स्पष्ट कीजिए।
वायसराय लॉर्ड कर्जन का पद भारत देश में सम्मानित था किंतु उनके द्वारा देश में किए गए मनमानीय शासन से भारतीयों को हमेशा दुखी होना पड़ा। उन्होंने अपने शासनकाल में विकास के अनेक कार्य किए तथा नए-नए आयोग बनाए किंतु इन सभी का लाभ अंग्रेजों के हित में था। इसलिए उनके बारे में यह कहा गया है। इस पद को संभालते समय उनकी अलग शान थी किंतु ठीक कर्तव्यों का पालन न कर सकने के कारण उन्हें देश-विदेश दोनों जगह पर नीचा देखना पड़ा।
प्रश्न 5. आपके और यहाँ के निवासियों के बीच में कोई तीसरी शक्ति और भी है- यहाँ तीसरी शक्ति किसे कहा गया है?
आपके वहाँ के निवासियों के बीच तीसरे शक्ति भी है। लेखक ने इस कथन में तीसरी शक्ति ईश्वर को कहा है। यह शक्ति कभी न कभी न्याय अवश्य करती है। लॉर्ड कर्जन को भी अत्याचार का फल भुगतना पड़ा। परिणामस्वरूप अधिक समय तक वे वायसराय जैसे ऊँचे पद पर न रह सके। परमात्मा का यह न्याय ही था जो कर्जन को इस्तीफा देना पड़ा।
विदाई संभाषण (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
प्रश्न 1:
‘विदाई-संभाषण’ पाठ का प्रतिपादय स्पष्ट करें।
उत्तर-
विदाई संभाषण पाठ वायसराय कर्जन जो 1899-1904 व 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे, के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। यह अध्याय शिवशंभु के चिट्टे का अंश है। कर्जन के शासनकाल में विकास के बहुत कार्य हुए, नए नए आयोग बनाए गए, किंतु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना तथा इस देश के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में सर्वाधिक उपयोग करना था। कर्ज़न ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा की। वह सरकारी निरंकुशता का पक्षधर था। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता तक पर उसने प्रतिबंध लगा दिया। अंततः कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उसे देश विदेश दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उसने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चला गया। लेखक ने भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही यह बताने की कोशिश की है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जनता हो या फिर लॉर्ड कर्जन जैसा वायसराय। यह निबंध भी उस समय लिखा गया है जब प्रेस पर पाबंदी का दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में विनोदप्रियता, चुलबुलापन, संजीदगी, नवीन भाषा प्रयोग एवं रवानगी के साथ यह एक साहसिक गद्य का नमूना भी है।
प्रश्न 2.
कैसर, ज़ार तथा नादिरशाह पर टिप्पणियाँ लिखिए।
उत्तर-
कैसर-
यह शब्द रोमन तानाशाह जूलियस सीजर के नाम से बना है। यह शब्द तानाशाह जर्मन शासकों के लिए प्रयोग होता था।
जार-
यह भी जूलियस सीजर से बना शब्द है जो विशेष रूप से रूस के तानाशाह शासकों (16वीं सदी से 1917 तक) के लिए प्रयुक्त होता था। इस शब्द का पहली बार बुल्गेरियाई शासक (913 में) के लिए प्रयोग हुआ था।
नादिरशाह –
यह 1736 से 1747 तक ईरान का शाह रहा। तानाशाही स्वरूप के कारण ‘नेपोलियन ऑफ परशिया’ के नाम से भी जाना जाता था। पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली को नादिरशाह ने भी आक्रमण के लिए भेजा था।
प्रश्न 3:
राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से किन शब्दों में विदा ली थी?
उत्तर-
राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से विदा लेते समय कहा-प्यारे नरवरगढ़ मेरा प्रणाम स्वीकार ले। आज मैं तुझसे जुदा होता हैं। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपद के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला यह गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़ यदि मैंने । जानबूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ चिंता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता और बहन की दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज्ञा दे।’
प्रश्न 4: ‘विदाई-संभाषण’ तत्कालीन साहसिक लेखन का नमूना है। सिदध कीजिए।
उत्तर-
विदाई संभाषण व्यंग्यात्मक, विनोदपूर्ण, चुलबुला, ताजगीवाला गद्य हैं। यह गद्य आततायी को पीड़ा की चुभन का अहसास कराता है। इससे यह नहीं लगता कि कर्जन ने प्रेस पर पाबंदी लगाई थी। इसमें इतने व्यंग्य प्रहार हैं कि कठोर-से-कठोर शासक भी घायल हुए बिना नहीं रह सकता। इसे साहसिक लेखन के साथ साथ आदर्श भी कहा जा सकता है।
प्रश्न 5:
कर्जन के कौन कौन से कार्य क्रूरता की सीमा में आते हैं?
उत्तर-
कर्जन के निम्नलिखित कार्य क्रूरता की सीमा में आते हैं।
(क) प्रेस पर प्रतिबंध।
(ख) करोड़ों लोगों की विनती के बावजूद बंगाल का विभाजन।
(ग) देश के संसाधनों का अंग्रेजी हित में प्रयोग।
(घ) अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करना।
विदाई संभाषण (पठित गद्यांश)
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
1. बिछड़न समय बड़ा करुणत्पादक होता है। आपको बिछड़ते देखकर आज हृदय में बड़ा दुख है। माइ लॉर्ड। आपके दूसरी बार इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। वे यही चाहते थे कि आप फिर न आयें। पर आप आए और उससे यहाँ के लोग बहुत ही दुखित हुए। वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें। पर हो. भाजभापके जाने पर हर्ष की जगह विषाद होता है। इसी से जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है, बड़ा पवित्र बाड़ा निर्मल और बड़ा कोमल होता है। वैर-भाद छूटकर शांत रस का आविर्भाव उस समय होता है।
प्रश्न
1. लेखक किसके बिछड़ने की बात कर रहा है। वह कहीं जा रहा है।
2. बिछड़न का समय कैसा होता हैं।
3. कर्जन के जाने के समय हर्ष की जगह विषाद क्यों हो रहा है।
उत्तर-
1 लेखक लॉर्ड कर्जन के भारत से बिछुड़ने की बात कर रहा है। वह इंग्लैंड वापस जा रहा है।
2 बिन का समय करुणा उत्पन्न करने वाला होता है। इस समय मन बड़ा पवित्र, निर्मल व कोमल हो जाता है। इस समय वैर भाव समाप्त होने लगता है और शांत रस अपने-आप आ जाता है।
3. कर्जन के जाने के समय हर्ष की जगह विषाद हो रहा है, क्योंकि कर्ज़न सर्वाधिक शक्तिशाली वायसराय होते हुए भी उसने देश-हित में कोई काम नहीं किया। अहंकार, गलत नीतियों व कार्यों के कारण उसके त्याग-पत्र की पेशकश को स्वीकार कर लिया गया। अब वह इंग्लैंड वापस जा रहा है। ऐसे में भारतीयों को हर्ष होना चाहिए किंतु भारतीय संस्कृति में विदाई के वक्त लोग दुःखी हो जाते हैं। इसलिए कर्जन के जाते समय भारतीयों को विषाद हो रहा है।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
2. आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए अंत में उनको जाना पड़ा। इससे आपका जान भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासन काल का नाटक चोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना भारंभ किया था, वह दुखत हो जावेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे धर दुख के साथ कैसे हुआ? आह! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता है। किंतु पर्दै के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं।
प्रश्न
1. कर्ज़न के शासनकाल का नाटक दुखांत क्यों हैं?
2 सबसे अधिक आश्चर्य की बात क्या है?
3 सूत्रधार कौन हैं? उसके द्वारा खेल खेलने से क्या अभिप्राय हैं।
उत्तर
1 कर्ज़न को भारत पर अंग्रेजी प्रभुत्व सुदृढ़ करने के लिए भेजा गया था परंतु उसकी नीतियों के कारण देश में समस्याएँ बढ़ती गई। समस्याओं का समाधान करने के बजाय दमन का रास्ता अपनाया गया। इससे इंग्लैंड के शासक इससे नाराज हो गए और कर्ज़न बीच में ही पद से हटा दिया गया। अत कर्ज़न के शासनकाल का नाटक दुखत में बदल गया।
2सबसे आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जाएगा। जिसके भादि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुख के साथ हुआ।
3 सूत्रधार इंग्लैंड का शासक है। वह भारत पर वायसराय के जरिए शासन करता धा। वायसराय को अंग्रेजी प्रभुत्व स्थापित करने हेतु कार्य करने की छूट दी जाती थी। अगर वह सही ढंग से काम नहीं करता तो उसे हटाने का अधिकार राजा को था। उसने कनि को दोबारा वायसराय बनाया ताकि वह भारत में अंग्रेजों के अनुकूल नीतियाँ बनाएँगे, परंतु कर्जन के निरंकुश शासन से अंग्रेज-विरोधी माहौल बन गया। अत कर्जन को बीच में ही हटा दिया गया। इसी को सूत्रधार को खेल खेलना कहा गया।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
3. विचारिए तो, या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई। जितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे। अलिफ लैला के अलहदीन ने चिराग रगड़कर और अबुल हसन ने बगदाद के खलीफा की गद्दी पर आँख खोलकर वह शान न देखी, जो दिल्ली दरबार में आपने देखी। आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी और आपके प्रभु महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की चाँदी की। आप दाहिने थे, वह बाएँ. आप प्रधम थे, वह दूसरे। इस देश के सब रईसों ने आपको सलाम पहले किया और बादशाह के भाई को पीछ। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊंचा था, हौदा, धवर, छत्र आदि सबसे बढ़ चढ़कर थे। सारांश यह है कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में भाप ही का एक दर्जा धा। किंतु अब देखते हैं कि जंगी लाट के मुकाबले में आपने पटखनी खाई, सिर के बल नीचा आ रहे! आपका स्वदेश में वही ऊँचे माने गए, आपको साफ़ नीचा देखना पड़ा! पदत्याग की धमकी से भी ऊँचे न हो सके।
प्रश्न
1. ‘कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरें किसे कहा गया और क्यों?
2 कज़न की भारत में कैसी शान-शौकत थी?
3 पद त्याग की धमकी से ऊंचे न होने से का अभिप्राय है?
उत्तर-
1 यह पंक्ति लई कर्जन के लिए कही गई है। भारत में वायसराय का पद सर्वोच्च होता था। एक तरह से सम्राट की शक्तियों से युक्त था। उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता था, परंतु गलत नीतियों के चलते किसी को उस पद से हटना पड़े तो यह अपमानजनक होता है। कर्ज़न के साथ भी ऐसा हुआ था।
2 कर्जन बहुत शक्तिशाली वायसराय था। उसे कल्पना से अधिक मान-सम्मान व शान-शौकत मिली। उसने दिल्ली के दरबार में इतना वैभव देखा जितना अलादीन ने चिराग कर व अबुलसन ने बगदाद का लाफा बनकर भी नहीं देखा था। उसकी व उसकी पत्नी की कुर्सी सोने की बनी थी। इन्हें इंग्लैंड के राजा के भाई से भी अधि क सम्मान मिलता था। जुलूस में इसका हाथी सबसे आगे व सबसे ऊँचा चलता था। ईश्वर व महाराज एडवर्ड के बाद कर्जन को ही माना जाता था।
3. कर्जन ने वायसराय की कौंसिल में मनपसंद फौजी अफसर रखना चाहा। इसके लिए गैरकानूनी बिल भी पास किया। इस कार्य की हर जगह निदा हुई। इस पर उसने पद त्याग की धमकी दी। उसके इस्ती को बादशाह ने मंजूर किया। कन का पासा उलट गया। पद लेने के बजाय पद छोड़ना पड़ा।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
4. आप बहुत धीर गंभीर प्रसिद्ध थे। उस सारी धीरता गंभीरता को आपने इस बार कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करने और कोकेशन वकृता देते समय दिवाला निकाल दिया। यह दिवाला तो इस देश में हुआ। उधर विलायत में आपके बार-बार इस्तीफा देने की धमकी ने प्रकाश कर दिया कि जड़ हिल गई है। अंत में वहाँ भी आपको दिवालिया होना पड़ा और धीरता भीरता के साथ दृढ़ता को भी तिलांजलि देनी पड़ी। इस देश के हाकिम आपकी ताल पर नाचते थे, राजा-महाराजा डोरी हिलाने से सामने हाथ बाँधे हाजिर होते थे। आपके एक इशारे में प्रलय होती थी। कितने ही राजों को मट्टी के खिलौने की भाँति आपने तोड़-फोड़ डाला। कितने ही मट्टी-काठ के खिलौने आपकी कृपा के जादू से बड़े बड़े पदाधिकारी बन गए। आपके इस इशारे में इस देश की शिक्षा पायमान हो गई, स्वाधीनता उड़ गई। बंग देश के सिर पर आर रखा गया। आह, इतने बड़े माइ लॉई का यह दर्जा हुआ कि फौजी अफसर उनके इच्छित पद पर नियत न हो सका और उनको उसी गुरसे के मारे इस्तीफा दाखिल करना पक्षा, वह भी मंजूर हो गया। उनका रखाया एक दम कर न रखा, लटा उन्हीं को निकल जाने का हुन्म मिला!
प्रश्न
1. कर्जन किसलिए प्रसिद्ध थे? उनका भारत व इंग्लैंड में दिवाला केस निकला?
2. कज़न का भारत में कैसा प्रभाव था?
3. कज़न को इस्तीफा क्यों देना पड़ा?
उत्तर-
1. कर्जन धीरता व गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे। कर्जन ने कौंसिल में बंगाल विभाजन जैसा गैरकानूनी कानून पारा करवाया। कनपोकेशन में भारत विरोधी बातें कहीं। इससे इनकी घटिया मानसिकता का पता चल गया। भारत में इनका पुरजोर विरोध किया गया। उधर इलैंड में इस्ती की धमकी से इनकी कमजोर स्थिति का पता चल गया। ब्रिटिश सरकार ने इनकी कमजोर हालत के कारण इनका इस्तीफा मंजूर कर लिया।
2. कर्जन का भारत में जबरदस्त प्रभाव था। यहाँ के अफसर इसके इशारों पर नाचते थे तथा राजा-महाराजा उसकी सेवा में हाज़िर रहते थे। उसने अनेक राजाओं का शासन छीन लिया तथा अनेक निकम्मों को व्यड़े बड़े पदों पर बैठाया।
3. कन एक फौजी अफसर को अपनी इच्छा के पद पर रखवाना चाहते थे, परंतु उनकी बात नहीं मानी गई। इस पर क्रोधित होकर इसने अपना इस्तीफा भेज दिया जिसे रवीकार कर लिया गया। इस प्रकार ये अपमानित हुए।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
5. जिस प्रकार आपका बहुत ऊँचे चढ़कर गिरना यहाँ के निवासियों को दुखित कर रहा है, गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुखित करता है। आपका पद छूट गया तथापि आपका पीछा नहीं छूटा है। एक अदना क्लर्क जिसे नौकरी छोड़ने के लिए एक महीने का नोटिस मिल गया हो नोटिस की अवधि को बड़ी घृणा से काटता है। आपको इस समय अपने पद पर रहना कहाँ तक पसंद है यह आप ही जाते होंगे। अपनी दशा पर आपको कैसी घृणा भाती है, इस बात के जान लेने का इन देशवासियों की अवसर नहीं मिला पर पतन के पीछे इतनी उलझन में पड़ते उन्होंने किसी को नहीं देखा।
प्रश्न
1. गिरकर पड़ रहना से क्या आशय हैं।
2. ललक ने भारतवासियों के किससे छुटकारा पाने की बात कही हैं?
3. कज़न अपने ही फैलाए जाल में फंसकर रह गए। कैसे?
उत्तर-
1. लेखक कहता है कि कर्जन ने पद से त्याग-पत्र दे दिया, जिसे मंजूर कर लिया गया तथा अगले वायसराय के आने तक पद पर बने रहने को कहा गया। इस बात पर लेखक व्यंग्य करता है कि जिस पद से फन ने प्रतिष्ठा के कारण त्याग पत्र दिया था, उसी पर कुछ दिन काम करने से गिरकर पड़े रहने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह समय अत्यंत अपमानजनक होता है।
2. लेखक ने भारतवासियों के कर्ज़न से छुटकारा पाने की बात कही है। भारतीय उसके इंग्लैंड वापसी के दिन गिन रहे थे।
3. कर्जन ने जो कुछ सोचा, उसके उलट हो गया। इस्तीफे की धमकी से उसने अपने पक्ष को सही ठहराना चाहा, परंतु उसका इस्तीक ही मंजूर कर लिया गया। वह इस पटनाक्रम को संभाल नहीं पाया तथा अपने ही फैलाए जाल में फैलाई जाल में फँस गया।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
6. क्या आंख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी को कुछ न सुनने का नाम ही शासन है? क्या प्रज्ञा की बात पर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी मर्जी के विरुद्ध जिह से सब काम किए चले जाना ही शासन कहलाता है? एक काम तो ऐसा बतलाइए, जिसमें आपने जिद्द छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो। कैसर और तार भी घेरने घोटने से प्रजा की बात सुन लेते हैं पर आप एक गोका तो बताइए, जिसमें किसी अनुरोध या प्रार्थना सुनने के लिए प्रजा के लोगों को मापने अपने निकट फटकने दिया हो और उनकी बात सुनी हो। नादिरशाह ने जब दिल्ली में कत्लेआम किया तो आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर उसने कलेआम उसी क्षण रोक गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया। इस समय आपकी शासन- भवधि पूरी हो गई है तथापि बंग-विलेद किए बिना घर जाना आपको पसंद नहीं है! नादिर से भी बढ़कर भापकी जिद्द है। क्या समझते हैं। से मज़ा के जी में दुख नहीं होता? आप विचारिए तो एक आदमी को आपके कहने पर पद न देने से आप नौकरी छोड़े जाते। हैं. इस देश की प्रजा को भी यदि कहीं जाने की जगह होती, तो क्या वह नाराज होकर इस देश को छोडन जाती?
प्रश्न
1. कर्ज़न ने किस प्रकार शासन किया था? क्या उराका शासन उचित था?
2. कैसर और ज़ार कौन थे? इन्हें किस काम के लिए जाना जाता है।
3. कर्ज़न और नादिरशाह के बीच क्या तुलना की गई है।
उत्तर-
1. कर्जन ने सदा निरंकुश शासन किया। उसने मनमाने आदेश दिए तथा प्रजा की हर बात को अनसुना कर दिया। यह शासन पूर्णतया अनुचित था। लोकहित से बड़ी शासक की जिद नहीं होती।
2. कैसर’ और ‘ज़ार’ शब्द रोम के तानाशाह जूलियस सीजर से बने हैं। कैसर शब्द का प्रयोग ‘मनमानी करने वाले शासकों तथा ज़ार शब्द का प्रयोग रूस के तानाशाहों के लिए किया जाता था।
3. नादिरशाह ने जिद के कारण दिल्ली में भयंकर कलेआम करवाया। इसी तरह कर्जन ने बंगाल-विभाजन कर दिया तथा आम जनता के जीने के अधिकार छीने। कर्जन नादिरशाह से भी अधिक जिद्दी था। नादिरशाह ने आसिफजाह की प्रार्थना पर तत्काल कत्लेआम रुकवाया, परंतु कर्ज़न पर आठ करोड़ लोगों की गिड़गड़ाहट का कोई असर नहीं पड़ा।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
7. यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्द ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए। यहाँ की प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुख और कष्टों की । अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है। दुख का समय भी एक दिन निकल जाएगा, इसी से सब दुखों को झेलकर, पराधीनता सहकर भी वह जीतीं है। माइ लॉर्ड। इस कृतज्ञता की भूमि की महिमा आपने कुछ न समझी और न यहाँ की दीन प्रजा की श्रद्धा-भक्ति अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुख है।
प्रश्न
1. लॉर्ड कर्जन की जिद्द से भारतीय जनता ने क्या पीड़ा सही?
2. भारतीय प्रजा की क्या विशेषता है?
3. लखक को किस बात का दुख हैं?
उत्तर-
1. लॉर्ड कर्जन को बंगाल विभाजन की जिद्द थी। उसने 1905 में बंगाल विभाजन किया। जनता की प्रार्थनाओं व विरोध पर उसने कोई ध्यान नहीं दिया। इससे जनता बहुत परेशान हो गई थी। कर्जन को इंग्लैंड वापस जाना था, परंतु जाते जाते वह बंगाल का विभाजन भी कर गया।
2. भारतीय प्रजा की विशेषता यह है कि यह अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। उसे पता है कि संसार में हर चीज का अंत है। दुख का समय भी धीरे-धीरे निकल जाएगा। इसी से वह सब दुखों को झेलकर पराधीनता सहकर भी जीती है।
3. लेखक को इस बात का दुख है कि कर्ज़न ने भारत-भूमि की गरिमा को नहीं समझा। उसने भारत के कृतज्ञता भाव को नहीं समझा। यदि वह भारतीयों की भलाई के लिए कुछ करता तो अपने साथ गरीब प्रजा की श्रद्धा भक्ति को ले जाता।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
8. अभागे भारत! मैंने तुमसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी, जो इस जीवन में असंभव है। तूने मेरा कुछ नहीं । बिगाड़ा, पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ कमी न की। संसार के सबसे पुराने देश! जब तक मेरे हाथ में शक्ति थीं, तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिएँ कुछ कर सकें। पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझे।’ आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातें भूल सकता है, पर इतनी उदारता माई लॉर्ड में कहाँ?
प्रश्न
1. लेखक ने लार्ड कज़न पर क्या व्यय किया हैं?
2. भारत ने लाई कज़न से कैसा व्यवहार किया?
3, इतनी उदारता माई लॉर्ड में कहाँ?’ का व्यग्य बताइए।
उत्तर-
1. लेखक लॉर्ड कर्जन पर व्यंग्य करता है कि उसने भारत से हर तरह के लाभ उठाए। उसने वह शान देखी। जिसे वह कभी नहीं पा सकता। उसने भारतीयों का बहुत कुछ बिगाड़ा तथा भारत की भलाई नहीं की।
2. भारत ने लॉर्ड कर्जन का कुछ नहीं बिगाड़ा। उसे पूरा मान-सम्मान दिया। उसकी शान-शौकत बढ़ाई तथा उसके अत्याचार सहकर भी कुछ नहीं किया।
3. लेखक व्यंग्य करता है कि कर्जन जाते समय भारतीयों की प्रशंसा, अपने कुकृत्यों को स्वीकारना तथा भारत के अच्छे भविष्य की 1कामना कर दें तो यह देश उसकी सारी पिछली बातें भूल सकता है, परंतु कर्ज़न में उदारता नहीं है। वह घमंडी तथा नस्ल-भेद से ग्रस्त है।
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